डिसक्लेमरः नीचे दी गई घटना का जीवित या मृत व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं है। सबसे जरूरी बात यह कि इसे आप महाराष्ट्र की राजनीति से जोड़कर कतई न देखें। संयोगवश यदि किसी भी नजरिए से मिलता-जुलता लगे तो इसे मात्र यादृच्छिक ही समझें। हाँ मजा लेने के लिए उस घटना से जोड़कर देखते हैं तो इसके लिए आप स्वतंत्र हैं। आपकी स्वंत्रता की वैधानिक जिम्मेदारी आपकी है।
प्रिये! क्या तुम्हें याद है मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूँ। याद है मैंने तुम्हें किस तरह दुश्मन के चंगुल से भगा ले गया था। याद है तुम्हें वह चश्मीश पंडित जिनके जबड़े का ऑपरेशन हुआ था। किस तरह उन्होंने चुपके-चुपके-चोरी-चोरी हो रही शादी में तुम्हारे बगल अपने भतीजे को बिठा दिया। किसी को भनक भी नहीं लगी और तुम फुर्र हो गई। तुम्हारा फुर्र होना मेरे प्यार के प्रति तुम्हारी दीवानगी को दर्शाता है। पंडित जी ने फेरे के समय सात साल की बजाय पाँच साल के फेरे मारने के लिए कहा था। लेकिन यह क्या तुम ढाई फेरे के बाद किसी और के साथ भाग गई। मुझे तुम्हारे भागने पर नहीं, मेरी बेवकूफी पर हँसी आ रही है। दुनियाभर की लड़कियों को छोड़कर भागने वाली लड़की के चक्कर में पड़ गया। भागने वाली लड़की हमेशा भागती ही रहती है।
प्रिये कहाँ चुप बैठने वाली थी। उसने भी पलटकर उत्तर दिया – तुम्हें जितना मजा लेना था, तुमने ले लिया। अब तुम्हारे साथ एक-एक दिन एक-एक युग सा प्रतीत होता है। जहाँ तक यादों की बात है तो जवानी में सुअर भी खूबसूरत लगता है। तुमने अपनी और मैंने अपने हिसाब से शादी की। फिर इसमें धोखा देने की बात कहाँ से आई।
प्रिये मैं मानती हूँ कि तुम्हें छोड़कर जाना मेरे लिए कठिन काम है। लेकिन मैं मजबूर है। मेरे पीछे चौकीदार के चेले-चपाटे ईडी और सीबीआई हाथ धोकर पड़ गए हैं। मैं तुम जैसे बेरोजगार के साथ अधिक नहीं रह सकता। वरना ईडी-इनकम टैक्स के चक्कर में भरा-भराया पेट सड़क पर आ जाएगा। तुम खुद को बड़ा समझदार समझते हो। यह समझदारी समय के साथ आई है। मैं बस इतना कहना चाहूँगी कि ‘जिधर हरी उधर चरी का फार्मूला अपनाओ और नौ-दो ग्यारह हो जाओ। जब से तुम मेरी जिदगी से गए हो तब से मेरे सारे पाप धूल गए हैं और अब मैं संत कहते हैं।।