वह सबसे बारी-बारी पूछ रही था। जनता से क्या पूछना था, वह हमेशा से भीतर से भेड़ और बाहर से महंगाई के खिलाफ थी। विपक्षी दल से पूछा गया तो उनके एक नेता ने कहा – मैंने ही तो सबसे पहले यह मुद्दा उठाया था। उसने सत्तारूढ़ दल से भी पूछ लिया। उन्होंने कहा – हम आजादी के बाद से ही इसके खिलाफ कटिबद्ध हैं। अतिशीघ्र हम एक बिल ला रहे हैं। सत्तारूढ़ दल विपक्ष से कम उत्साहित थोड़े न था। उसने अपने गठबंधन दलों से पूछ लिया। वे भी कौन से दूध के धुले थे। कह दिया – महंगाई को जड़ से मिटाना ही चाहिए। सबने एक स्वर से कहा।

उसने किसानों से पूछा, वे भी खिलाफ थे। जवानों से पूछा, वे भी खिलाफ थे। पुलिस से पूछा, वह भी खिलाफ़ थी। उसने चोर, डाकुओं, लुटेरों से पूछा, वे भी खिलाफ थे। उसने पेट्रोल से पूछा, वह भी खिलाफ था। उसने डीजल से पूछा, वह भी ख़िलाफ़ था। उसने गैस सिलेंडर से पूछा, वह भी खिलाफ था। मुद्रा से पूछा, वह भी खिलाफ थी। क्या ठोस, क्या द्रव्य, क्या गैस सारा देश महंगाई के खिलाफ धरने पर था। कमाल का माहौल दिख रहा है! वह बुदबुदाया। आप भी आइए न बहिन जी, क्या आप महंगाई के खिलाफ नहीं हैं। एक प्रदर्शनकारी ने उससे कहा। “बिलकुल हूँ, मैं क्या देश से अलग हूँ आपसे अलग हूँ।” उसने पूरी विनम्रता से कहा। हाँ, लगती तो बिलकुल हमारी जैसी हो। आओ बैठो न हमारे साथ – लोगों ने मिलकर कहा।

वह आराम से उनके बीच जा बैठी। बातचीत होने लगी। उसने कुछ नए नारे भी बनाए। थोड़ी ही देर में लगने लगा कि वह उनसे अलग कभी थी ही नहीं। आपका नाम क्या है बहिन जी? यूँ ही किसी ने पूछ लिया। “महंगाई” उसने, निडर होकर जवाब दिया। पहले तो किसी ने ध्यान न दिया। “क्या” एकाएक कोई चौंका। यह वक्त इन बातों को सोचने का नहीं कि कौन क्या है, हर किसी का समर्थन कीमती है – किसी ने भीड़ में से कहा और बहस शुरु हो गई। नहीं-नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है? निकालो इस कुलक्षणा को यहाँ से – रोष से जिसने यह कहा था वही हैरानी से बोला – अरे! पर वह गयी कहाँ?अभी तो यहीं थी! मैंने अभी उसे विपक्षी दल के पास बैठे देखा था – सत्ता दल के एक नेता ने कहा। ऐसा कैसे हो सकता है! बिलकुल अभी मैंने उसे मंच पर देखा – विपक्षी नेता आँखें दिखाते हुए कहने लगा। पागल हो गए हो क्या? वह गठबंधनधारियों के बीच है, जाकर पकड़ो उसे। – ठेकेदारों ने कहा। ये ठेकेदार बड़े धूर्त होते हैं। अपना दोष हमेशा दूसरों के मत्थे गढ़ देते हैं -गठबंधन के एक नेता ने कहा। अभी तो मैंने उसे मीडिया में देखा – चोरों ने कहा। ओफ्फो, कहाँ छुप गयी जाकर। उसे कैसे ढूँढ़ा जाए? उस कोने में जाते हैं तो इस कोने में दिखाई देती है। इस कोने में आते हैं तो न जाने कहाँ गायब हो जाती है! पर इतना तो पक्का है कि वह है हमारे ही बीच। सामने तो कहीं दिख नहीं रही – पुलिस ने कहा। 

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published.