समाचार निर्देश एस डी सेठी – दिल्ली पुलिस जैसे महकमें में एक मुन्ना भाई आईपीएस अधिकारी संजय कुमार सहरावत को जाली सर्टिफिकेट के बूते निलंबित कर दिया है। सीबीआई जैसी तेज तर्रार जांच ऐजेंसी ने जाली सर्टिफिकेट की जांच करने में ढाई साल लगा दिए।. अब जाकर सीबीआई ने आरोप पत्र दाखिल किए हैं। सीबीआई ने संजय कुमार सहरावत के खिलाफ 7 सितंबर 2020 को आईपीसी की धारा 419/420/467/468/471 के तहत जालसाजी और धोखाधड़ी आदि का मुकदमा दर्ज किया था। जबकि सीबीआई को इस मामले की शिकायत 14 मार्च 2018 को ही प्राप्त हो गई थी। संजय कुमार पर आरोप है कि उसने आईपीएस की नौकरी पाने के लिए अपने समान नाम वाले शख्स के जन्मतिथि और शैक्षणिक योग्यता प्रमाण पत्र आदि दस्तावेजों का इस्तेमाल किया था। इस बाबत दर्ज की गई एफआईआर के मुताबिक बहादुर गढ निवासी महावीर सिंह ने सीबीआई को शिकायत में बताया की एडीशनल डीसीपी संजय की असली जन्मतिथि 8 जुलाई 1977 है। इससे पहले संजय कुमार इन्हीं फर्जी सर्टिफिकेट की बदौलत 15 जुलाई 1988 को श्रम मंत्रालय में बतौर क्लर्क भर्ती हुआ था। वहां उसकी जन्मतिथि 8 जुलाई 1977 ही लिखी हुई है। 4 अक्टूबर 2007 को संजय ने क्लर्क की नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। यूपीएससी के माध्यम से संजय का 6 जून 2009 को पुलिस में दानिक्स सेवा में चयन हो गया। लेकिन यहां उसने परीक्षा में बैठने के लिए 1 दिसंबर 1981 की गलत जन्मतिथि से आवेदन किया। इसी गलत जन्मतिथि के आधार पर यूपीएससी से आयु सीमा में छूट हांसिल कर परीक्षा मे शामिल हो गया। संजय कुमार सहरावत ने जन्मतिथि और शिक्षा प्रमाण पत्र इस्तेमाल किया, वह दिल्ली पूसा रोड स्थित दशघरा इलाके में डीडीए फ्लैट निवासी संजय कुमार का है। उस संजय के पिता का नाम भी ओमप्रकाश है। वह सुनार समुदाय का है। जबकि संजय कुमार सहरावत दिल्ली में सिंघु गांव निवासी है। अब यहां सीबीआई की ढीला पोली सामने आई है। सीबीआई ने इसकी एफआईआर में ही ढाई साल लगा दिये। जबकि सीबीआई चाहती तो वह पहले गांव, स्कूल, कॉलेज के सहपाठीयों, दोस्तों, रिश्तदारो आदि से भी आसानी से पता लगा सकती थी। ये सब स्कूल और कॉलेज के रिकार्ड में भी है। इस बीच शिकायत कर्ता का भी मनोबल टूटना जाहिर है। जांच ऐजेंसियों से भी भरोसा उठने की नौबत थी। यहां सीबीआई की जांच पर सवालिया निशान लग गया है। यहां ये दीगर है कि शिकायतकर्ता महावीर सिंह के मुताबिक संजय सहरावत ने पुलिस अफसर बनने के लिए जन्मतिथि 1 दिसंबर 1981 बताई है। जबकि उसके छोटे भाई की 5 फरवरी 1982 है। और इनके बीच में इनकी बहन का भी जन्म हुआ है। अब सवाल साफ है कि क्या दो महीने में एक महिला तीन संतानों को जन्म दे सकती है। इससे तो साफ जाहिर है कि संजय ने जालसाजी की है। इसके अलावा वह श्रम मंत्रालय में भी रहा। तो क्या यहां से भी सीबीआई अपनी जानकारी नहीं जुटा सकती थी। इस बावत सीबीआई ने जांच में कई आम से सवाल छोडे हैं। इसकी भी जांच होनी चाहिये।